Jain Aagam Acharanga - पृथ्वीकाय की हिंसा का हेतु - Book 1 Chapter 1 Lesson 2 Sutra 3 Hindi
Aagam Sutra
Original
तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेइया - इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जाई-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघायहेउं; से सयमेव पुढविसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा पुढविसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणइ ।
तं से अहिताए, तं से अबोहीए।
Transliteration
tattha khalu bhagavatā pariṇṇā paveiyā - imassa ceva jīviyassa parivaṃdaṇa-māṇaṇa-pūyaṇāe jāī-maraṇa-moyaṇāe dukkhapaḍighāyaheuṃ; se sayameva puḍhavisatthaṃ samāraṃbhai, aṇṇehiṃ vā puḍhavisatthaṃ samāraṃbhāvei, aṇṇe vā puḍhavisatthaṃ samāraṃbhaṃte samaṇujāṇai ।
taṃ se ahitāe, taṃ se abohīe।
Meaning
इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने परिज्ञा-विवेक का उपदेश प्रदान किया हैं। कोई व्यक्ति
- इस जीवन के लिए,
- वंदना-प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए,
- जन्म-मरण से मुक्त होने के लिए,
- दुख का प्रतिकार करने के लिए
स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों कि हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है या हिंसा करनेवाले कि अनुमोदना करता है।
ये सभी हिंसा कि प्रवृत्तियाँ उसके अहित के लिए हैं और अबोधि का कारण बनते हैं, अर्थात ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूपी बोधि के अभाव का कारण बनते हैं।