Jain Aagam Acharanga - अग्निकाय की सजीवता - Book 1 Chapter 1 Lesson 4 Sutra 1 Hindi

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Aagam Sutra

Original

से बेमि — णेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा ।

जे लोगं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ । जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ ।

जे दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे । जे असत्थस्स खेयण्णे, से दीहलोगसत्थस्स खेयण्णे ।

Transliteration

se bemi — ṇeva sayaṃ logaṃ abbhāikkhejjā, ṇeva attāṇaṃ abbhāikkhejjā ।

je logaṃ abbhāikkhai, se attāṇaṃ abbhāikkhai । je attāṇaṃ abbhāikkhai, se logaṃ abbhāikkhai ।

je dīhalogasatthassa kheyaṇṇe, se asatthassa kheyaṇṇe । je asatthassa kheyaṇṇe, se dīhalogasatthassa kheyaṇṇe ।

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Meaning

वह मुमुक्षु आत्मा कभी भी किसी अग्निकाय के जीवत्व का निषेध नहीं करती है। स्वयं कि आत्मा का भी अपलाप नहीं करती है, क्योंकि जो अग्नि का अपलाप करता है, वह स्वयं का अपलाप करता है। जो स्वयं का अपलाप करता है, वह अग्नि-लोक का अपलाप करता है।

जो दीर्घलोकशस्त्र-अग्निकाय के स्वरूप को जानता है, वह अशस्त्र-संयम के स्वरूप को जानता है। जो संयम के स्वरूप को जानता है, वह दीर्घलोकशस्त्र के स्वरूप को भी जानता है।

Explanation

मैं कहता हूँ

से बेमि” - यह शब्द चलायमान प्रकरण को सूचित करता है, अर्थात् छःकाय के स्वरूप और छःकाय के हिंसा-अहिंसा के विषय में मैं कहता हूँ।

अग्नि लोक क्या है?

लोगं” - प्रस्तुत प्रसंग में लोक शब्द अग्निकाय का बोधक है। प्राचीन काल से, अन्य धर्म परंपराओं में जल और अग्नि को देवता मानकर, उन्हें पूजा जाता था, परंतु उनकी हिंसा के विषय में कोई विचार नहीं किया गया था। पानी से शुद्धि और पंचाग्नि तप आदि से सिद्धि मानकर, उनका सिर्फ़ प्रकटरूप से उपयोग किया जाता था, परंतु जिनशासन में अहिंसा कि दृष्टि से इन दोनों को सजीव सिद्ध करके उनकी हिंसा का निषेध किया गया है।

अग्नि की सजीवता

अग्नि की सजीवता स्वयं ही सिद्ध है, क्योंकि उसमें प्रकाश और उष्णता के गुण हैं। ये गुण सजीवों में होते हैं। अग्नि वायु के बिना नहीं जी सकती।

अग्नि स्नेह, वायु, काष्ट आदि का आहार लेके बढ़ती है। आहार के अभाव में वह घटती है।

यदि सचेतन द्रव्य की सचेतनता नहीं स्वीकारी जाए, तो वह अभ्याख्यान दोष है। उसके अस्तित्व में नास्तित्व का दोषारोपण होता है। दूसरे जीव कि सत्ता को न मानना, स्वयं की आत्मा को नहीं मानने के बराबर है।

दीर्घलोक क्या है?

दीर्घलोक का अर्थ है वनस्पति।

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