Jain Aagam Acharanga - पृथ्वीकाय की सजीवता - Book 1 Chapter 1 Lesson 2 Sutra 2 Hindi

  1. Hindi

Aagam Sutra

Original

संति पाणा पुढो सिता । लज्जमाणा पुढो पास ।

‘अणगारा मो’ त्ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे वि अणेगरूवे पाणे विहिंसइ ।

Transliteration

saṃti pāṇā puḍho sitā । lajjamāṇā puḍho pāsa ।

‘aṇagārā mo’ tti ege pavayamāṇā, jamiṇaṃ virūvarūvehiṃ satthehiṃ puḍhavikammasamāraṃbheṇaṃ puḍhavisatthaṃ samāraṃbhamāṇe aṇṇe vi aṇegarūve pāṇe vihiṃsai ।

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Meaning

पृथ्वीकायिक जीव अलग-अलग शरीर में रहते हैं, अर्थात वे प्रत्येक शरीरी होते हैं। आत्मसाधक लज्जावान होने से हिंसा करने में संकोच को अनुभव करते हुए संयममय जीवन जीते हैं। उनकों तू अलग पहचान! कोई साधु सिर्फ वेषधारी होता है। वे “मैं गृहत्यागी हूँ” ऐसा कहते हुए भी विविध प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वीकायिक जीवों कि हिंसा करते हैं। पृथ्वीकाय जीवों के हिंसा के साथ वे अनेक प्रकार के आश्रित अन्य जीवों की भी हिंसा करते हैं।

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