Jain Aagam Acharanga - आत्म-अस्तित्व का बोध - Book 1 Chapter 3 Lesson 1 Sutra 2 Hindi
Meaning
कोई प्राणी स्वयं के स्वमति से, अर्थात पूर्वजन्म के स्मरण से अथवा तीर्थंकर आदि ज्ञानियों के प्रत्यक्ष वचन से अथवा विशिष्ट श्रुतज्ञानियों के पास से वचन सुनकर जान लेता है कि - मैं पूर्व दिशा से आया हूँ या दक्षिण दिशा से आया हूँ या पश्चिम दिशा से आया हूँ या उत्तर दिशा से आया हूँ या ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ या अधो दिशा से आया हूँ या कोई अन्य दिशा से या विदिशा से आया हूँ।
किसी प्राणी को यह ज्ञान हो जाता है कि - भवांतर में मेरी आत्मा परिभ्रमण करनेवाली है। इन दिशाओं में और अनुदिशाओं में कर्मानुसार जो परिभ्रमण कर रही है, गमनागमन कर रही है, वह मैं हूँ; मैं आत्मा हूँ।
गमनागमन करनेवाली नित्य परिणामी आत्मा को जो जान लेता है, वह आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी तथा क्रियावादी होता है।