Jain Aagam Acharanga - आत्म-अस्तित्व का बोध - Book 1 Chapter 1 Lesson 1 Sutra 2 Hindi
Aagam Sutra
Original
तं जहा — पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे दिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि ।
एवमेगेसिं णो णायं भवइ ।
अस्थि मे आया उववाइए, णत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी, के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ।
Transliteration
taṃ jahā — puratthimāo vā disāo āgao ahamaṃsi, dāhiṇāo vā disāo āgao ahamaṃsi, paccatthimāo vā disāo āgao ahamaṃsi, uttarāo vā disāo āgao ahamaṃsi, uḍḍhāo vā disāo āgao ahamaṃsi, ahe disāo vā āgao ahamaṃsi, aṇṇayarīo disāo vā aṇudisāo vā āgao ahamaṃsi ।
evamegesiṃ ṇo ṇāyaṃ bhavai ।
asthi me āyā uvavāie, ṇatthi me āyā uvavāie, ke ahaṃ āsī, ke vā io cuo iha peccā bhavissāmi ।
Meaning
कोई प्राणी अपनी स्वमति से, अर्थात पूर्वजन्म की स्मृति होने पर स्व-बुद्धि से अथवा तीर्थंकर आदि प्रत्यक्षज्ञानियों के वचन से अथवा विशिष्ट श्रुतज्ञानियों के निकट से उपदेश सुनकर जान लेता है कि -
- मैं पूर्व दिशा से आया हूँ
- या दक्षिण दिशा से आया हूँ
- या पश्चिम दिशा से आया हूँ
- या उत्तर दिशा से आया हूँ
- या ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ
- या अधो दिशा से आया हूँ या
- किसी अन्य दिशा से या विदिशा से आया हूँ।
कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञान होता है कि - मेरी आत्मा भवांतर में श्रम संचरण करनेवाली है।
जो इन दिशाओं, अनुदिशाओं में कर्मानुसार जो परिभ्रमण करती है, गमनागमन करती है, वही मैं (आत्मा) हूँ।